Enjoy Biggest Sell

Friday, April 14, 2023

Satuani 2023: सतुआ संक्राति के दिन खाया और खिलाया जा रहा है सत्‍तू, जानें क्‍या है इस लोकपर्व का वैज्ञानिक आधार

किसी भी समाज में मनाये जाने वाले पर्व न सिर्फ व्‍यक्ति के जीवन को एक नई उर्जा देते हैं बल्कि उनके पीछे वैज्ञानिक आधार भी होता है. उत्तर और पूर्वी भारत के कई राज्यों में मनाया जाने वाला एक ऐसा ही लोकपर्व है सतुआ संक्राति या सतुआन. ज्‍योति‍षीय गणना के अनुसार इस दिन सूर्य अपनी उच्‍च राशि मेश में प्रवेश करता है इसलिए इसे मेष संक्रांति  (Mesh Sankranti) या सूर्य संक्राति भी कहते हैं. इस बार सूर्य का मेष राशि में प्रवेश 14 अप्रैल को हो रहा है. इसलिए यह पर्व आज मनाया जा रहा है. लोग न सिफ सत्‍तू का सेवन कर रहे हैं बल्कि इसका दान कर दूसरों को भी खिला रहे हैं.

हर पर्व का है सामाजिक व वैज्ञानिक आधार

ज्‍योतिषविद् पं चक्रपाणि भटट् बताते हैं कि हमारे मनीषियों ने मानव जीवन को बेहतर बनाने के लिए तमाम शोध किये और उन शोधों को सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक व वैज्ञानिक कसौटियों के कसने के बाद ही लोगों के बीच लेकर आये. हमारे व्रत त्‍योहार भी इसी का परिणाम हैं. जिस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है उसे मेष संक्रांति के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान सूर्य उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरी करते हैं. इस दिन ऋतु का शास्‍त्रीय परिवर्तन तो नहीं होता लेकिन भौतिक परिवर्तन हो जाता है. नई फसल आती है जिसमें चना प्रमुख होता है. वैज्ञानिक कारण पर ध्यान दें तो इसी दिन से सूर्य का ताप बढ़ने लगता है. इससे लोगों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. हमारे आयुर्वेद के शास्‍त्रों में वर्णित है कि चने के सत्‍तु (Chana Sattu) का सेवन करने से पेट में ठंडक बनी रहती है जिससे लू लगने की संभावना नहीं रहती. यह सुपाच्‍य भी होता है.

सतुआ खाना भी है, दान भी देना है

पं भटट् बताते हैं कि हमारी हिन्‍दू परंपरा में इस दिन सतुआ दान देने की प्रथा है. चने के सत्‍तू के साथ आम का टिकोरा, ककड़ी, गुड़, मिट्टी के घड़े में जल और पंखा दान देने के बाद ही उसे ग्रहण करने की परंपरा है. ये सभी चीजें व्‍यक्ति को गर्मी से बचाती हैं. पं भट्ट बताते हैं कि दान देने के पीछे सामाजिक महत्‍व है. हमारी संस्‍कृति सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया... की है. हम स्‍वस्‍थ रहें और दूसरा व्‍यक्ति भी स्‍वस्‍थ रहे. हमारी भारतीय संस्‍कृति में है कि अकेले मत खाओ. जो अकेले खाता है वह पाप खाता है. इसलिए बांट कर खाओ. यही सतुआ संक्राति (Satua Sankranti) में दान देने के पीछे का भाव है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

सामाजिक सद्भाव, समानता, सामाजिक न्याय: बाबासाहेब के विचार आज कितने प्रासंगिक हैं?



from NDTV India - Latest https://ift.tt/NCSJD9P

No comments:

Post a Comment

900 फिल्मों में काम, 85 हीरोइन का हीरो, 1 साल में 39 फिल्में रिलीज...ये बच्चा है हिंदी सिनेमा का इकलौता सुपरस्टार, पहचाना क्या?

अक्सर फिल्म स्टार्स के बारे में कुछ फिगर्स डिक्लेयर किए जाते हैं, जिसमें बताया जाता है कि उन्होंने एक साल में कितनी फिल्मों में काम किया या ...