चूरू. क्षेत्र में तेज सर्दी में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है। रविवार को तापमान में वृद्धि होने से कड़कड़ाती सर्दी से थोड़ी राहत मिली। रविवार को न्यूनतम पारा बढ़कर 2.9 डिग्री पर आ गया जबकि शनिवार को पारा माइनस 0.6 दर्ज किया गया था। वहीं अधिकतम पारा लगभग स्थिर रहा। इस दौरान 25.7 डिग्री रहा। शनिवार को अकितम पारा 25.5 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। दोपहर को धूप में भी थोड़ी तेजी रही। इससे लोगों को थोड़ा सुकून मिला।
परिंडों में जम गई बर्फ
घांघू. गांव घांघू व आस-पास क्षेत्र में कड़ाके की सर्दी का दौर जारी है। रविवार अल सुबह बाहर पक्षियों के लिए रखे परिंडों का पानी जम गया। गांव के किसान नेमीचन्द जांगिड़ ने बताया की तेज सर्दी के कारण गेंहू की फसल की बढ़वार रुक गई है। फसल के ऊपर से पत्ते भी पीले पड़ गए हैं। इसी तरह सर्दी रही तो फसल खराब हो जाएगी। सांडवा. रविवार सुबह तेज सर्दी से लोग ठिठुर गए। सर्दी के तेवर तीखे थे। इस बीच ग्रामीण इलाकों में सुबह-शाम अलाव का सहारा लेकर सर्दी से बचाव कर रहे हैं।
पाले से फसलों को बचाने के उपाय बताए
सरदारशहर. कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने रबी फसलों को शीतलहर व पाले से बचाने के उपाय बताए। कृषि वैज्ञानिक डा.वीके सैनी, जीएस पुण्डीर व हरीश राछौया ने बताया कि दिसम्बर व जनवरी के महीनों में टमाटर, मिर्च, बैंगन आदि सब्जियों, फलवृक्षों व मटर, चना, सरसों, जीरा, धनियांॅ, सौंफ आदि में पाले से नुकसान की संभावना अधिक रहती है। इससे बचने के लिए फलवृक्षों तथा सब्जियों पर गंधक के तेजाब का छिड़काव करें। पाला पडऩे की संभावना हो उन दिनों की शुरूआत में ही फसल पर व्यापारिक गंधक के तेजाब के 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें। इसके लिए केवल प्लास्टिक स्प्रेयर का ही प्रयोग करें। एक छिड़काव का असर पौधों को 10 से 15 दिन तक पाले के प्रभाव से बचा सकता है। इस अवधि के बाद भी पाले की संभावना बनी रहे तो 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव दोहराएं। पाला पडऩे की संभावना होने पर खेत की उत्तरी-पश्चिमी दिशा में किनारे, फलवृक्षों के बीच-बीच में जगह-जगह कचरा या सूखी घास एकत्रित करके 10 से 20 फीट के अंतर पर अर्धरात्रि में जलाकर धुआं करें। अधिक धुएं के लिए इन पदार्थों के साथ इंजन के जले हुए तेल (कू्रड ऑयल) का प्रयोग भी कर सकते हैं । फलदार वृक्षों, नर्सरी के पौधों व सीमित क्षेत्र वाले बगीचों, नकदी सब्जी वाली फसलों को टाट, पॉलीथिन अथवा भूसे से ढक दें। या उत्तर-पश्चिम दिशा की तरफ वायुरोधी टांटीयां बांधें। सिंचाई करें।
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